दो बीजों की कहानी

0

🌱 दो बीजों की कहानी(Inspirational Story of Two Seeds):- 

बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर-सा बगीचा था जहाँ मिट्टी की खुशबू फैली रहती थी। उसी बगीचे की नरम मिट्टी में दो छोटे-से बीज गिरे हुए थे। दोनों बीज बिल्कुल पास-पास थे, लेकिन उनके विचार और सोच अलग थी। यही सोच उनकी किस्मत बदलने वाली थी।

Inspirational Story of Two Seeds
Inspirational Story of Two Seeds

पहला बीज बहुत उत्साही था। उसने मिट्टी की नमी महसूस की और कहा—
“मेरा जीवन सिर्फ यहाँ दबे रहने के लिए नहीं है। मुझे इस मिट्टी से बाहर निकलना होगा। मुझे आकाश देखना है, सूरज की रोशनी का आनंद लेना है और हवाओं के साथ झूमना है। मैं बड़ा होकर पेड़ बनना चाहता हूँ ताकि मेरे फल से लोग पेट भर सकें, मेरी छाँव में थके लोग आराम कर सकें और मेरी शाखाओं पर पंछी अपना घर बना सकें।”

उसने डर को किनारे रखा और हिम्मत करके अपनी जड़ें नीचे भेजनी शुरू कीं। मिट्टी भारी थी, लेकिन उसने धैर्य रखा। धीरे-धीरे उसकी जड़ें गहराई तक गईं और एक दिन नन्हा अंकुर मिट्टी को चीरकर ऊपर निकल आया।

सूरज की किरणें उसके ऊपर पड़ीं तो उसे नई ताकत मिली। बारिश की बूंदों ने उसे जीवन दिया और हवा ने उसे झुलाकर मजबूत बनाया। समय के साथ वह अंकुर एक पौधा बना और पौधा एक बड़े पेड़ में बदल गया। अब उसकी शाखाओं पर पक्षी चहचहाते थे, उसकी छाँव में बच्चे खेलते थे और उसके फलों से सबको भोजन मिलता था। वह बीज अब सबके लिए उपयोगी था क्योंकि उसने डर को नहीं, साहस को चुना था।

दूसरी ओर दूसरा बीज बिल्कुल अलग सोच रखता था। वह हर समय डरता रहता। उसने खुद से कहा—
“अगर मैंने अपनी जड़ें फैलाईं तो पत्थरों से टकरा जाएँगी। अगर मैंने सिर बाहर निकाला तो सूरज की गर्मी मुझे जला देगी। अगर मैंने अंकुर निकाला तो कोई जानवर मुझे खा जाएगा। अच्छा है कि मैं यहीं मिट्टी में छिपा रहूँ। यहाँ अंधेरा तो है, लेकिन मैं सुरक्षित तो हूँ।”

उस बीज ने कभी बाहर निकलने की कोशिश ही नहीं की। वह अपने डर की कैद में पड़ा रहा। दिन बीतते गए, मौसम बदले, लेकिन वह वहीं जकड़ा रहा।

फिर एक दिन बगीचे में एक मुर्गी आई। वह चारा खोज रही थी। उसने मिट्टी को कुरेदा और उसी डरे-सहमे बीज को चोंच मारकर खा लिया। उस बीज का जीवन बिना शुरू हुए ही समाप्त हो गया।


✨ सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में साहस और डर के बीच का चुनाव ही हमारी किस्मत तय करता है।

  • पहला बीज जिसने जोखिम उठाया, कठिनाइयों का सामना किया, वही विशाल पेड़ बनकर सबके लिए उपयोगी हुआ।

  • दूसरा बीज जिसने डर के कारण कदम ही नहीं बढ़ाया, वह बिना खिले ही नष्ट हो गया।

हमारे जीवन में भी यही सच है। अगर हम डरते रहें कि “क्या होगा अगर मैं असफल हो गया?”, तो हम कभी आगे नहीं बढ़ पाएँगे। लेकिन अगर हम साहस करके कोशिश करें, तो धीरे-धीरे हम भी बड़े पेड़ की तरह सफल और उपयोगी बन सकते हैं।

#InspirationalStory #Motivational Story #LifeLessons #PositiveThinking #दोबीजोंकीसीख #प्रेरणादायककहानी #SuccessMindset #Hind iStory Inspirational Story

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five + 7 =