बरगद के पेड़ की छाँव: गाँव की परंपरा और बचपन की यादें
बरगद के पेड़ की छाँव: गाँव की परंपरा और बचपन की यादें(Banyan Tree Village Story):-
Banyan Tree Village Story
बरगद के पेड़ की छाँव
गाँव की चौपाल के बीचों-बीच एक विशाल बरगद का पेड़ खड़ा था। उसकी जड़ें ज़मीन में गहराई तक फैली थीं और शाखाएँ ऐसे फैलीं कि पूरे चौपाल पर छाया रहती। गाँव के लोग उसे सिर्फ पेड़ नहीं, बल्कि गाँव की पहचान मानते थे। बरगद की छाँव में बैठना, बातें करना और फैसले लेना, यह सब गाँव की परंपरा थी।
रामलाल, गाँव का बुज़ुर्ग, अक्सर अपनी चारपाई लेकर वहीं बैठता था। बच्चे खेलते-खेलते थक जाते तो उसी पेड़ के नीचे आकर सुस्ता जाते। औरतें दोपहर में जब खेतों से लौटतीं तो वहीं रुककर पानी पीतीं और थोड़ी देर गपशप करतीं। बरगद का पेड़ पूरे गाँव को जोड़ने वाला धागा था।

एक दिन गाँव में बड़ा विवाद खड़ा हो गया। दो किसानों के खेत की मेड़ को लेकर झगड़ा हो गया। बात इतनी बढ़ी कि दोनों परिवार आपस में लड़ाई पर उतर आए। गाँव का माहौल बिगड़ने लगा। तब पंचायत बुलाने का फैसला हुआ, और हमेशा की तरह पंचायत बरगद के पेड़ की छाँव में बैठी।
गाँव के बड़े-बुज़ुर्ग, जिनमें रामलाल भी थे, सब इकट्ठे हुए। लोग अपनी-अपनी बातें कहने लगे। बरगद की छाँव में जब चर्चा हुई, तो धीरे-धीरे गुस्सा कम हुआ और समझदारी बढ़ी। आखिरकार दोनों परिवारों ने मान लिया कि झगड़े से किसी का भला नहीं होता। पेड़ के नीचे बैठकर जब उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया, तो पूरा गाँव ताली बजाने लगा।
बरगद के पेड़ ने उस दिन भी वही किया, जो वह बरसों से करता आ रहा था—लोगों को जोड़ना।
Banyan Tree Village Story
बच्चों के लिए भी यह पेड़ खास था। गर्मी की छुट्टियों में वे उसकी शाखाओं पर झूले डालते और घंटों खेलते। कोई लुकाछिपी खेलता, तो कोई उसकी जड़ों में मिट्टी खोदकर किले बनाता। उनके लिए यह पेड़ खेल का मैदान था।
बरगद की छाँव में कई कहानियाँ भी जन्म लेतीं। रात को जब गाँव वाले चौपाल पर इकठ्ठा होते, तो बुज़ुर्ग पुराने किस्से सुनाते—कभी आज़ादी की लड़ाई के, कभी गाँव की परंपराओं के। बच्चे मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहते। बरगद का पेड़ इन कहानियों का गवाह था।
समय बीतता गया। एक दिन गाँव में सरकारी अधिकारी आए और बोले कि चौपाल की ज़मीन पर स्कूल बनना चाहिए। गाँव वाले खुश भी थे और उदास भी। खुश इसलिए कि बच्चों को पढ़ाई का मौका मिलेगा, और उदास इसलिए कि शायद बरगद का पेड़ काटना पड़ेगा।
तभी रामलाल ने खड़े होकर कहा, “बरगद को मत काटो, यही तो हमारी छाँव है। इसके पास ही स्कूल बनाओ, ताकि बच्चे पढ़ाई भी करें और इस पेड़ की छाँव में खेलें भी।”
गाँव वालों ने अधिकारी से गुज़ारिश की, और उनकी बात मान ली गई। स्कूल बना, पर बरगद का पेड़ वैसे ही खड़ा रहा। अब बच्चे स्कूल की छुट्टी के बाद उसी पेड़ की छाँव में बैठकर पढ़ाई करते और खेलते।
बरगद का पेड़ आज भी वहीं खड़ा है। उसकी जड़ें गाँव की मिट्टी से जुड़ी हैं और उसकी शाखाएँ आसमान तक फैली हैं। वह अब सिर्फ एक पेड़ नहीं, बल्कि गाँव की आत्मा है—जो हर पीढ़ी को जोड़ता है, सिखाता है और अपने साए में सबको बराबरी का एहसास दिलाता है।
बरगद की छाँव में पली-बढ़ी पीढ़ियाँ हमेशा यह कहती हैं: “गाँव की असली ताक़त खेतों और घरों में नहीं, बल्कि उस बरगद की छाँव में है, जिसने हमें हमेशा जोड़े रखा।”
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