पनघट का पानी: गाँव की सादगी और अपनापन की कहानी
पनघट का पानी: गाँव की सादगी और अपनापन की कहानी(The Water of Panchgat: A Heartwarming Village Tale):-
The Water of Panchgat
पनघट का पानी
गाँव के पनघट पर सुबह-सुबह हल्की धुंध छाई हुई थी। सूरज की पहली किरण जैसे धीरे-धीरे खेतों की हरियाली पर पड़ रही थी। गाँव के लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे। कोई हल चला रहा था, कोई गायों को चराने ले जा रहा था और कोई घर के काम निपटा रहा था।
रामू अपनी दादी के साथ पनघट की ओर जा रहा था। रामू के हाथ में खाली लोटा था और दादी ने उसे पानी भरने की जिम्मेदारी सौंपी थी। पनघट पर पहुँचते ही रामू ने देखा कि पहले से ही कई औरतें अपने लोटे और कलश लेकर खड़ी थीं। कुछ महिलाएँ पुराने किस्से सुनाती हुई हँस रही थीं। बच्चों की हँसी पनघट की ठंडी हवा में गूँज रही थी।

“रामू, ध्यान से पानी भरना, ज्यादा झटका मत देना,” दादी ने कहा। रामू ने सिर हिलाकर वादा किया। उसने लोटे को धीरे-धीरे पनघट के पानी में डाला और भरने लगा। तभी पनघट के किनारे बैठा बूढ़ा दादी का मित्र, रामजी दादा, पास आए।
“अरे रामू, ध्यान से भर रहे हो न? पनघट का पानी सिर्फ पीने के लिए नहीं है, यह गाँव के लोगों के बीच अपनापन और प्यार का प्रतीक भी है,” रामजी दादा ने हँसते हुए कहा।
रामू ने दादा की बात को समझा और और भी सावधानी से पानी भरने लगा। तभी उसने देखा कि एक नन्हा पक्षी पनघट के पास गिर गया है। पक्षी डर और कमजोरी से काँप रहा था। रामू तुरंत उसके पास दौड़ा और उसे हाथ में उठाया। दादी और पनघट पर मौजूद महिलाएँ देखकर हँस दीं और रामू की मदद करने लगीं। उन्होंने घास और पानी लाकर पक्षी के लिए रखा।
“देखो रामू, गाँव में सब एक-दूसरे की मदद करते हैं। यही तो अपनापन है,” दादी ने मुस्कुराते हुए कहा। रामू ने सिर हिलाया और सोचा कि सचमुच, गाँव में रहना कितना सुखद है।
दिनभर गाँव में हलचल रहती रही। महिलाएँ घर के काम में व्यस्त थीं, पुरुष खेतों में हल चला रहे थे और बच्चे तालाब के पास खेल रहे थे। रामू ने अपने दोस्तों के साथ खेलते हुए देखा कि गाँव के लोग हर छोटी-बड़ी चीज़ में एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। किसी के लिए पानी लाया जा रहा था, किसी के लिए लकड़ी जुटाई जा रही थी।
शाम को, जब सूरज धीरे-धीरे ढलने लगा, पनघट पर सभी लोग इकट्ठे हुए। बच्चों की हँसी, महिलाओं की बातें, बुजुर्गों की कहानियाँ और हल्की हवा ने गाँव के वातावरण को और भी खुशनुमा बना दिया। दादी ने रामू के हाथ पकड़कर कहा, “देखो बेटा, यही है गाँव की असली खुशियाँ। हर कोई एक-दूसरे का ख्याल रखता है। यही प्यार और अपनापन है।”
रामू ने खुशी से दादी को देखा। वह समझ गया कि पनघट का पानी सिर्फ पीने के लिए नहीं, बल्कि गाँव के लोगों के बीच प्यार, अपनापन और सहयोग का प्रतीक है। जब लोग अपने काम से थक कर पनघट पर आते हैं, तो यहाँ का माहौल उनके दिल को सुकून देता है।
रात ढलने पर, जब गाँव के घरों में दीपक जल रहे थे और बच्चे अपने घर लौट रहे थे, रामू ने दादी से कहा, “दादी, मैं बड़ा होकर भी हमेशा गाँव में रहना चाहूंगा। यहाँ की मिट्टी, यहाँ का पानी और यहाँ के लोग मेरी असली दुनिया हैं।”
दादी मुस्कुराईं और रामजी दादा ने सिर हिलाते हुए कहा, “बिलकुल बेटा, गाँव की असली दौलत यही है – प्यार, अपनापन और सादगी। और पनघट का पानी हमेशा इसे याद दिलाता रहेगा।”
और इस तरह, पनघट का पानी सिर्फ जीवन की जरूरत नहीं, बल्कि गाँव के लोगों के बीच स्नेह, अपनापन और खुशियों का संदेश बन गया। गाँव की यह सादगी और अपनापन हमेशा रामू के दिल में बस गया।
- सफ़र में मिला गाँव का सुकून – प्रेरक यात्रा कहानी
- असली धन – गाँव से जुड़ी प्रेरक कहानी
- रोटी का मोल – गाँव से जुड़ी एक प्रेरक कहानी
- इंसानियत का असली मोल – गाँव से जुड़ी एक प्रेरक कहानी
The Water of Panchgat