सड़क किनारे की दोस्ती – गाँव यात्रा कहानी

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सड़क किनारे की दोस्ती – गाँव यात्रा कहानी(Village Roadside Friendship Story):- 

Village Roadside Friendship Story

नीलम, जो पटना में रहती थी और एक आईटी कंपनी में काम करती थी, लंबे समय के बाद अपने गाँव सिंहपुरा जा रही थी। शहर की भाग-दौड़, ट्रैफिक और कंप्यूटर स्क्रीन के बीच बीती दिनचर्या से थक चुकी, नीलम अपने गाँव की सादगी और अपनापन महसूस करने के लिए बेहद उत्साहित थी।

गाँव पहुँचते ही उसने महसूस किया कि शहर की ऊँची इमारतों और शोर-शराबे से दूर यहाँ की हवा कितनी साफ़ और ठंडी है। रास्ते में खेत, तालाब और कच्ची पगडंडियाँ उसके बचपन की यादें ताज़ा कर रही थीं। गाँव की गलियों में कदम रखते ही बच्चों की हँसी, बूढ़ों की बातचीत और पशुओं की हल्की आवाज़ उसे पुराने दिनों में ले गई।

Village Roadside Friendship Story
Village Roadside Friendship Story

जैसे ही नीलम गाँव के मुख्य रास्ते पर चल रही थी, उसे एक छोटा कुत्ता उसके पीछे-पीछे आता दिखाई दिया। कुत्ते की भूख और मासूमियत देखकर उसने अपने बैग में से थोड़ी रोटी निकालकर उसे दी। कुत्ता खुशी-खुशी उसकी ओर आया और उसके पैरों के पास बैठ गया। इस छोटे कुत्ते ने नीलम को महसूस कराया कि दोस्ती और अपनापन हमेशा किसी बड़े नाम या दौलत से नहीं आते, बल्कि छोटे इशारों और स्नेह से बनते हैं।

रास्ते में बच्चों ने उसे देखा और खेल में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। नीलम ने उनके साथ झूला झूला, मिट्टी में कूद-कूद कर खेला और गाँव की गलियों में घूमी। वह महसूस कर रही थी कि गाँव की सादगी, लोग और उनके व्यवहार शहर की चमक-धमक से कहीं अधिक खूबसूरत और अपनापन भरे हैं।

दोपहर को गाँव के तालाब किनारे नीलम ने कुछ बुज़ुर्गों से बातचीत की। उन्होंने उसे गाँव की परंपराओं, त्योहारों और लोककथाओं के बारे में बताया। नीलम ने महसूस किया कि यह अनुभव किसी किताब या इंटरनेट से नहीं मिल सकता। यह अपनापन, संबंध और प्राकृतिक वातावरण ही असली शिक्षा और सुख देता है।

Village Roadside Friendship Story

शाम होते-होते गाँव के मेले में नीलम ने बच्चों, बुज़ुर्गों और कुत्ते के साथ बैठकर मिट्टी के दीपक जलाए। ढोल-नगाड़ों की थाप और गाँव के गीत सुनते हुए उसे समझ आया कि यात्रा केवल नई जगह देखने का नाम नहीं है। बल्कि यह अनुभव करने का नाम है – लोगों से, उनके व्यवहार से और संस्कृति से जुड़ने का।

नीलम ने तय किया कि अब वह हर साल गाँव ज़रूर आएगी। क्योंकि सफ़र का असली आनंद केवल दूरी तय करने में नहीं, बल्कि वहाँ के अनुभवों और रिश्तों में है। इस सड़क किनारे की दोस्ती ने उसे जीवन का सबसे बड़ा सबक सिखाया – सादगी, अपनापन और दोस्ती की छोटी-छोटी चीज़ें ही असली खुशी देती हैं।

अंत में नीलम अपने पुराने घर की छत पर बैठी और गाँव की गलियों, तालाबों और बच्चों की हँसी को निहार रही थी। उसने महसूस किया कि यह यात्रा केवल एक छुट्टी नहीं, बल्कि जीवन को एक नया दृष्टिकोण देने वाला अनुभव थी। और इस अनुभव का असली साथी वह मासूम कुत्ता और गाँव के बच्चे थे, जिनसे उसने सच्ची दोस्ती की मिठास सीखी।

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