वासना के भूखे अकबर को दुर्गावती का करारा जवाब

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वासना के भूखे अकबर को दुर्गावती का करारा जवाब (Unconscious response to Hungry Akbar of lust of durgawati): कि दुर्गावती नाम था उसका। साक्षात दुर्गा थी वह। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध चंदेल राजपूतों में उसका जन्म हुआ था। वंश इतना उच्च माना जाता था चित्तौड़ के महाराणा संग्रामसिंह (राणा सांगा) की बहन भी इस वंश में ब्याही थी। दुर्गावती का विवाह हुआ था, गोंड राज परिवार  में। विवाह के कुछ ही वर्षों के पश्चात दुर्गावती को एक पुत्र हुआ था‍ जिसका नाम वीर नारायणसिंह रखा गया।

Unconscious response to Akbar's hunger-hungry reply
Unconscious response to Hungry Akbar of lust of durgawati

वीर नारायण अभी बालक ही था कि दुर्गावती के पति की मृत्यु हो गई। उस अराजक मुस्लिम युग में एक जवान, सुंदर विधवा हिन्दू रानी को कौन चैन से रहने देता। दुर्गावती का राज्य तीन ओर से मु‍स्लिम राज्यों से घिरा था। पश्चिम में था निमाड़-मालवा का शुजात खां सूरी, दक्षिण में खानदेश का मुस्लिम राज्य और पूर्व में अफगान। तीनों ने असहाय जान दुर्गावती के राज्य पर हमले प्रारंभ कर दिए। दुर्गावती घबराईं नहीं। उस राजपूत बाला ने गोंडवाने के हिन्दू युवकों को एकत्र कर एक सेना तैयार की और स्वयं उसकी कमान संभाल तीनों मुस्लिम राज्यों का सामना किया।

दुर्गावती का करारा:  दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया। पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाने की ओर झांकना भी बंद कर दिया। इन तीनों राज्यों की विजय में दुर्गावती को अपार संपत्ति हाथ लगी.

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सन् 1564 का वर्ष था। भारत के सारे हिन्दू राजे-रजवाड़ों ने इस्लाम के सम्मुख सिर झुका दिया था। बचे थे मात्र उत्तर भारत के चित्तौड़ और गोंडवाने के राज्य व दक्षिण भारत के विजय नगर का साम्राज्य।Unconscious response to Akbar’s hunger-hungry reply

लूटमार-आगजनी करती बढ़ी चली आ रही मुगल फौजों का सामना किया दुर्गावती ने गढ़ा-मंडला के मैदान में। अपने 20 हजार घुड़सवारों और 1 हजार हाथियों के साथ दुर्गावती मुगल फौज के सामने आ डटी। दुर्गावती के घुड़सवारों के पास न जिरह-बख्तर थे न घोड़ों पर। इधर मुगल सैनिक सिर से कमर और हाथों तक लोहे के कवच से सुरक्षित थे। फिर 20 हजार हिन्दू घुड़सवारों के सामने 50 हजार की विशाल मुगल सेना थी।

Unconscious response to Akbar's hunger-hungry reply
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आसफ खां ने अपने दाएं-बाएं के 10 हजार सवारों को घूमकर दुर्गावती की फौजों के पार्श्व से तीर बरसाने का हुक्म दिया। सामने से 10 हजार घुड़सवार हिन्दू फौजों को दबाने में लगे। तीन ओर के हमले से हिन्दू सैनिक परेशान हो उठे, तब दुर्गावती अपने 1 हजार हाथियों के साथ मुगलों की मध्य सेना पर टूट पड़ी। एक विशाल हाथी पर दुर्गावती सवार थी। चारों ओर थे उसके अंगरक्षक घुड़सवार।

पास ही एक अन्य हाथी पर 18 वर्षीय वीरनारायण मां की सहायता कर रहा था। दोपहर बाद प्रारंभ हुए इस युद्ध में 2-3 घंटे की लड़ाई के बाद दोनों ओर के सैनिक थककर चूर हो गए। तब संध्या 4 बजे आसफ खां ने अपने ताजा दम 20 हजार घुड़सवारों को हमले का हु्क्म दिया। थके हिन्दू सैनिक इन तरोताजा घुड़सवारों का सामना नहीं कर पाए।Unconscious response to Akbar’s hunger-hungry reply

सैनिक मरते गए और कतारें टूट गईं। बढ़ते मुगल सैनिकों ने दुर्गावती और उनके पुत्र वीरनारायण को घेर लिया। दोनों हाथियों की रक्षी कर रहे हिन्दू अंगरक्षकों की पंक्तियां भी टूटने लगीं। अब मां-बेटे पूरी तरह घिर चुके थे किंतु क्रोध से उफनती शेरनी दुर्गा मुगलों के लिए काल बन गई। दुर्गावती के धनुष से चले तीर मुगलों के कवच चीर उन्हें मौत की नींद सुलाने लगे।

उधर मुगलों के बाण की वर्षा से वीरनारायण घायल हो गए। लेकिन मां के वीर बेटे ने रणक्षेत्र नहीं छोड़ा। वह घायल होने के बाद भी मुगलों पर तीर बरसाता रहा। तभी दुर्गावती ने अपने महावत को वीरनारायण के हाथी के पास अपना हाथी ले चलने का आदेश दिया। रणक्षेत्र में अटे-पड़े मुगल घुड़सवारों के बीच से लड़ती-भिड़ती दुर्गावती अपने बेटे के पास पहुंची और वीरनारायण से पीछे हटकर चौरागढ़ चले जाने को कहा। वीर बालक हटने को तैयार नहीं था।

बड़ी समझाइश के बाद उसके अंगरक्षक उसे रणक्षेत्र से निकाल ले जाने में सफल हुए। इधर दुर्गावती चट्टान बनी मुगलों का मार्ग रोके रही। अंधेरा घिरने लगा था और दोनों ओर के सैनिक पीछे हटकर अपने शिविरों को लौटने लगे थे। मृतकों की देह रणक्षेत्र में ही पड़ी रही और घायलों को उठा-उठाकर शिविर में लाया जा रहा था। दुर्गावती ने रात्रि में ही बचे-खुचे सैनिकों को एकत्र किया।

कुछ तो मारे गए थे, लगभग 10 हजार घुड़सवार वीरनारायण के साथ चौरागढ़ चले गए थे। कुल 5 हजार घुड़सवार और 500 हाथी दूसरे दिन के युद्ध के लिए शेष बचे थे। पराजय निश्चित थी। यह देख दुर्गावती ने अपने पुत्र वीरनारायण के पास एक संदेश भेजा- ‘बेटा अब तुम्हारा मुख देखना मेरे भाग्य में नहीं है। अपना इलाज करवाना व भावी युद्ध के लिए तैयार रहना, मैं हटूंगी नहीं, तेरे पिता के पास स्वर्ग जाना चाहती हूं। मेरे मरने के बाद गोंडवाने की रक्षा करना। भगवान यदि सफलता दे तो अच्‍छा है, लेकिन यदि पराजय हुई तो हिन्दू महिलाओं को मुसलमानों के हाथ मत पड़ने देना। उन्हें अग्नि देवता को सौंप देना। समय नहीं है अत: युद्ध के पूर्व जौहर की व्यवस्था कर लेना।

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Unconscious response to Hungry Akbar of lust of durgawati

अपने पुत्र को समाचार ‍भेज दुर्गावती अपने मुट्ठीभर सैनिकों के साथ शिविर से निकलीं। सामने खड़ा था विशाल मुगल रिसाला। कल के युद्ध में अतिरिक्त सेना के कारण मुगलों की क्षति कम हुई। दुश्मन के निकट पहुंच दुर्गावती ने हाथी के होदे में खड़े हो अपने सैनिकों पर एक नजर फेरी और अपना धनुष उठा गरज पड़ी- ‘हर-हर महादेव’। सैनिकों ने विजय घोष किया- ‘हर-हर महादेव’ और हिन्दू सैनिक मृत्यु का आलिंगन करने मुगल सेना पर टूट पड़े

500 हाथियों पर बैठे 1 हजार सैनिक और साथ के 5 हजार घुड़सवारों को मुगल रिसाले ने चारों ओर से घेर लिया। एक-एक कर हिन्दू घुड़सवार गिरते चले गए, सेना सिकुड़ती गई। अब मरने की बारी थी गज सवारों की। मुगलों की निगाह हाथी पर सवार 33 वर्षीय सुंदर दुर्गावती पर लगी हुई थी। आसफ खां ने आदेश दिया कि आसपास के हाथी सवारों को समाप्त कर दुर्गावती को जीवित पकड़ लो। इसे शहंशाह को सौंप इनाम पाएंगे।

धीरे-धीरे सारे हाथी समाप्त हो गए। जिधर दृष्टि डालो उधर ही मुगल घुड़सवार छाए थे। मुगलों का घेरा कसने लगा, लेकिन दुर्गावती के तीरों का बरसना बंद नहीं हुआ। तभी तीरों की एक बौछार दुर्गावती के हाथी पर लगी। महावत मारा गया। एक तीर दुर्गावती के गले और एक हाथ को भेद गया। असह्य पीड़ा से धनुष हाथ से छूट गया। हाथी को घेरकर खड़े मुगल सैनिक हाथी पर चढ़ने का प्रयास करने लगे। कुछ गंदी फब्तियां भी कस रहे थे। प्रतिष्ठा और बेइज्जती में गजभर का फासला था।

दुर्गावती ने परिस्‍थिति को भांपा और शीघ्रता से कमर में खुसी कटार खींची- ‘जय भवानी…!’ गरज समाप्त होते ही छप्प से कटार अपने हृदय में मार ली। पंछी उड़ चुका था। दुर्गावती की निष्प्राण देह हौदे में पड़ी थी।वासना के भूखे अकबर को दुर्गावती का करारा जवाब..(Unconscious response to Akbar’s hunger-hungry reply)

एक शांत राज्य, जहां के लोग सुखपूर्वक अपना जीवन जी रहे थे। किसी पड़ोसी पर आक्रमण नहीं कर रहे थे। ऐसे शांत राज्य को केवल अपने धन की पिपासा और स्त्रियों के लोभ में अकबर ने अकारण नष्ट कर डाला। गोंडवाने में लाखों हिन्दू मारे गए।

इतिहास लेखक स्मिथ कहता है कि भविष्य में भारतीय राज्यों को हड़पने वाले डलहौजी को भी अकबर ने मात कर दिया। नागरिकों की सुख-शांति को अकारण हाहाकार में बदल देने वाला व्यक्ति नरपिशाच तो हो सकता है, महान कदापि नहीं हो सकता

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