गाँव के पनघट पर दोस्ती: सच्चे रिश्तों की कहानी
गाँव के पनघट पर दोस्ती: सच्चे रिश्तों की कहानी(village friendship story at pangha):-
village friendship story at pangha
गाँव की सुबहें बड़ी निराली होती हैं। मुर्गे की बाँग के साथ ही लोग अपने-अपने काम में लग जाते हैं। औरतें घर-आँगन बुहारती हैं, मर्द खेतों की ओर निकल पड़ते हैं और बच्चे अपने खेल में मगन हो जाते हैं। लेकिन गाँव के जीवन की असली रौनक तो पनघट पर दिखती है। यही वह जगह है जहाँ औरतें पानी भरने आती हैं, हँसी-ठिठोली करती हैं और आपस में सुख-दुख बाँटती हैं।

इसी पनघट की गोरी मिट्टी पर दो सहेलियों की अनोखी दोस्ती जन्मी थी – राधा और गीता की। दोनों की उम्र लगभग बराबर थी और उनका गाँव भी एक ही था। सुबह-सुबह जब सूरज की लालिमा पूरे आसमान में छा जाती थी, तब दोनों घड़ों को सिर पर उठाए पनघट की ओर निकल पड़तीं। रास्ते में पेड़ों की सरसराहट, पक्षियों की चहचहाहट और बैलों की घंटियों की टनकार उनकी चाल में जैसे संगीत भर देती थी।
राधा का स्वभाव बड़ा चंचल था। वह हर बात पर खिलखिला पड़ती, मज़ाक करती और सबको हँसाती रहती। गीता थोड़ी गंभीर किस्म की लड़की थी। वह कम बोलती, लेकिन उसकी आँखों में गहरी समझ झलकती थी। पनघट पर बैठकर जब औरतें पानी भरतीं, तब राधा और गीता का मिलना जैसे पूरे माहौल को और भी जीवंत कर देता।
कभी राधा गीता से कहती –
“अरे गीता, तेरे घड़े की मुँडेर तो टेढ़ी है, पानी गिर जाएगा।”
तो गीता मुस्कुराकर जवाब देती –
“तेरे जैसे दोस्त के सहारे रहूँ तो पानी क्या, ज़िंदगी भी कभी नहीं गिरेगी।”
उनकी यह अनोखी समझ गाँव में सबके लिए मिसाल बन गई थी। दोनों सहेलियाँ खेतों में काम करने से लेकर त्योहारों की तैयारी तक, हर काम में एक-दूसरे का साथ निभातीं। पनघट उनके लिए केवल पानी भरने की जगह नहीं थी, बल्कि उनकी दोस्ती की डोर को मजबूत करने का ठिकाना था।
एक बार गाँव में भयंकर गर्मी पड़ी। कुएँ का पानी कम होने लगा। औरतें पनघट पर लंबी कतारों में खड़ी होने लगीं। ऐसी स्थिति में कई बार झगड़े भी हो जाते थे। लेकिन राधा और गीता हमेशा लोगों को समझातीं –
“पानी सबके लिए है, झगड़ा करने से नहीं मिलेगा। थोड़ा सब्र करो, सबको मिलेगा।”
उनकी इस समझदारी से कई बार गाँव में विवाद टल गए।
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समय बीतता गया। राधा की शादी पड़ोस के गाँव में हो गई। विदाई के दिन जब राधा जा रही थी, तो गीता की आँखों से आँसू थम ही नहीं रहे थे। राधा ने उसके हाथ पकड़कर कहा –
“गीता, चाहे मैं कहीं भी रहूँ, हमारी दोस्ती इस पनघट की तरह हमेशा बहती रहेगी। जब भी तू यहाँ पानी भरने आएगी, समझना मैं भी तेरे साथ खड़ी हूँ।”
वक्त के साथ दोनों की मुलाक़ातें कम हो गईं, लेकिन उनकी दोस्ती का किस्सा गाँव की हर औरत सुनाती थी। गाँव के बच्चे जब पनघट पर खेलते और पानी भरते देखते, तो बुजुर्ग औरतें मुस्कुराकर कहतीं –
“यही पनघट है, जिसने राधा और गीता जैसी सच्ची सहेलियाँ दीं।”
गाँव का वह पनघट आज भी वहीं है। समय बदल गया, कई घरों में नल लग गए, लेकिन जब कोई औरत घड़ा लेकर पनघट की ओर बढ़ती है, तो लोगों को अनायास ही राधा और गीता की दोस्ती याद आ जाती है। सच ही कहा जाता है – गाँव की मिट्टी में न केवल अन्न उगता है, बल्कि रिश्तों की सोंधी खुशबू भी जन्म लेती है।
✨ यह कहानी गाँव के जीवन और वहाँ की सच्ची दोस्ती की झलक देती है।