इंसानियत का असली मोल – गाँव से जुड़ी एक प्रेरक कहानी

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बिहार के सारण ज़िले के एक छोटे से गाँव बड़की टोला में एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे गाँव को इंसानियत का सही अर्थ समझा दिया।

गाँव की रामसखी देवी अपने चार साल के बेटे गुड्डू को गोद में लिए बरसात की ठंडी और अंधेरी रात में दर-दर भटक रही थीं।
पति भोला की कुछ वर्ष पहले शहर में सड़क दुर्घटना में मौत हो चुकी थी। मायके में माँ-बाप पहले ही छोड़ चुके थे, और ससुराल वालों ने साफ कह दिया था –
“अब तुम्हारा और तुम्हारे बच्चे का इस घर में कोई ठिकाना नहीं है।”

heartwarming rural Indian scene
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उस रात तेज़ बारिश में कपड़े भीग गए, बेटा ठंड से काँप रहा था। रामसखी आँखों में आँसू लिए गाँव के एक अमीर किसान के दरवाज़े पहुँची, लेकिन वहाँ से भी निराशा ही हाथ लगी।

उसी समय गाँव के बुजुर्ग हरिचरण बाबा ने रामसखी को देखा।
उन्होंने तुरंत कहा –
“बेटी, यह घर तुम्हारा है। इंसान का सहारा इंसान ही होता है।”

हरिचरण बाबा रामसखी और गुड्डू को अपने घर ले गए। उन्होंने आग तापने की व्यवस्था की, खाट बिछवाई और गरम दाल-भात खिलाया।

यह देख कर गाँव की औरतों की आँखें भर आईं। सब कहने लगे –
“पैसा, ज़मीन और दौलत सब कुछ बेकार है, असली दौलत तो इंसानियत है।”

उस रात पूरे गाँव ने महसूस किया कि इंसानियत का दीपक तभी जलता है, जब हम अपने दिल के दरवाज़े दूसरों के लिए खोल देते हैं।

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